एन रघुरामन
बेंगलुरु के पूर्वी इलाके में स्थित राजेंद्र नगर झुग्गी-बस्ती में रहने वाली 32 वर्षीय शांता, जो दूसरों के घरों में खाना पकाती है, महीने में बमुश्किल 1500 रुपए कमाती है। बैंक से पैसा निकालने और जमा करने के लिए शांता मोबाइल का इस्तेमाल करती है। वह अपने इलाके में सात महिलाओं के एक स्व-सहायता समूह की अगुआई करती है और उसने इन महिलाओं को भी साप्ताहिक आधार पर अपने कर्ज का भुगतान मोबाइल से करना सिखाया है।
ये महिलाएं कदाचित ही कभी बैंक या किसी एटीएम पर जाती हैं। शांता अपने बैंक संबंधी तमाम लेन-देन मोबाइल के जरिए ही करती है और उसने अपने पति को वेल्डिंग मशीन दिलाने के लिए बैंक से जो 9000 रुपए का कर्ज लिया था, उसकी किश्त भी इसके जरिए ही भरती है। शांता यहां की उन 100 महिलाओं में शामिल है जो पिछले एक साल से जारी पायलट प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। यह एक माइक्रो क्रेडिट प्रोजेक्ट है जो मोबाइल के जरिए होने वाले लेन-देन की मदद से चल रहा है।
मुझे बीती सदी का सत्तर का दशक याद आता है जब मैं डाकघर में रेडियो लाइसेंस के लिए भुगतान करने जाता था। मैं सरकार द्वारा अपने यूएमएस वाल्व रेडियो छिन जाने के डर से साल में एक बार रेडियो लाइसेंस की 15 रुपए फीस भरने के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़ा रहता था। बाद में सरकार ने फीस लेना बंद कर दिया क्योंकि उसे 15 रुपए जुटाने के लिए 17 रुपए खर्च करने पड़ रहे थे। ऐसा करने का कोई अर्थ नहीं था।
इसी तर्क को माइक्रो फाइनेंस, माइक्रो बैंकिंग और साप्ताहिक व दैनिक किश्त के संदर्भ में देखें। इन्हें संचालित करना बहुत महंगा होगा क्योंकि जो कर्मचारी झुग्गियों में जाएगा, वह ग्राहकों से एक निर्धारित धनराशि से ज्यादा नहीं जुटा पाएगा और उसका दैनिक वेतन उससे अधिक ही होगा जो ब्याज वह इन छोटे-छोटे ग्राहकों से जुटाएगा। इस विशाल आबादी से व्यवहार करने का सर्वोत्तम तरीका मोबाइल के जरिए बैंकिंग करने का ही है, जो निकटवर्ती एटीएम में पैसा जमा करने के बाद हर व्यक्ति के लिए पर्सनल कियोस्क की तरह काम करते हैं।
हर गरीब व्यक्ति बैंकिंग सेवा का इस्तेमाल करते हुए कर्ज ले सके और किश्तें भर सके, इसके लिए अच्छा होगा कि मोबाइल उसके लिए पर्सनल बैंकर की तरह कार्य करे। जिन इलाकों में बैंक नहीं पहुंच पाते, वहां सूदखोर सिर उठाने लगते हैं। ये सूदखोर एक समानांतर अर्थव्यवस्था चलाते हैं और उनकी ब्याज दरें अनाप-शनाप होती हैं। टेक्नोलॉजी काले धन के प्रवाह को कम कर सकती है और विधिसम्मत पैसे के लेन-देन में मददगार बनते हुए एक नई राह खोल सकती है।
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